संक्षिप्त इतिहास

बैसवारे की तलवार और लेखनी दोनों ही भारतीय इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं |राजस्थान और बुंदेलखंड की भांति यह क्षेत्र भी अपने गौरवमय अतीत के कारण उत्तर भारत में प्रसिद्ध हैं| यहाँ के सपूतों की गाथायें अवध की लोरियों ,ग्राम गीतों और लोक कथाओं में संजोई हुई हैं | सत्तावनी क्रांति में डौङियाखेङा के शासक राजा राव राम बख्श सिंह को बक्सर में इसी मन्दिर के निकट खड़े बट वृक्ष से लटकाकर फासीं दे दी थी तथा डिल्लेश्वर मन्दिर व राव साहब की राजधानी डौङिया में उनके किले व महल को तोपों से उड़ा दिया था | अंग्रेजो ने इसके अलावा यहां के तमाम बेगुनाहों को फाँसी दी तथा कत्लेआम करने के साथ ही जमकर रक्तपात किया | बक्सर में गंगा के किनारे जहां पेड़ से लटकाकर उन्हें फाँसी दी गयी थी | इसी स्थान पर भारत को अंग्रेजो की दासता से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले इस देश भक्त का स्मारक स्थल देशवासियों के लिए प्रेरणादायक तीर्थस्थल बन गया हैं |

17 फरवरी 1856 को जिस समय अंग्रेजी जनरल लार्ड डलहौजी ने अवध को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा की उस समय राव राम बख्श सिंह एक अच्छे शासक के रूप में विख्यात थे | ग़दर के समय राव साहब ने उन दिनों जिस सक्रियता और युद्ध कौशल का परिचय दिया उसके कारण जनरल हैवलाक का लखनऊ पहुचना मुश्किल हो गया था , इसे बीच से ही कानपुर लौट जाना पड़ा था | जुलाई 1857 से सितम्बर 1857 तक कानपुर-लखनऊ मार्ग के बीच बैसवारे के वीरों ने राव राम बख्श सिंह व राना बेनी माधव सिहं के नेतृत्व में जिस प्रकार अंग्रेजो जनरलों को मात दी और 29 जून 1857 को राव साहब के नेतृत्व में दिल्लेश्वर मन्दिर में जान बचाने के लिए घुसे 12 अंग्रेजो से जनरल ड़ीलाफौस सहित आठ को जिन्दा जलाने की घटना से अंग्रेजी सरकार का खून खौल उठा था |

21 मार्च 1858 को लखनऊ विजय के बाद अंग्रेजी सेना बैसवारे की ओर बढ़ी और सर होप ग्रान्ट के नेतृत्व में एक मई को पुरवा तथा 10 मई को डौङियाखेङा पहुची तथा गोलाबारी के बीच आक्रमण शुरू कर दिया | इस सेना ने दिल्लेश्वर मन्दिर का भी ध्वंश कर दिया जिसमे अंग्रेज जिन्दा जलायें गये थे | इसके बाद अंग्रेजी सेना ने डौङियाखेङा व किले को तहस-नहस कर दिया और लोगों पर भारी अत्याचार किये | सर होप ग्रान्ट को आश्चर्य था कि राव साहब सामने क्यों नहीं आ रहे हैं | अंग्रेजो को पता चला कि वें अपने साथियों सहित सेमरी में रुके हुए हैं , इस पर अंग्रेजो का लश्कर उधर बढ़ा जहां उसे जमींपुर, सिरियापुर, बजौरा के त्रिभुजाकार क्षेत्र में भीषण मोर्चे बंदी का सामना करना पड़ा| यद्यपि विजय अंग्रेजो को मिली लेकिन जिस संघर्ष का उन्हें सामना करना पड़ा उसकी उन्होंने कल्पना भी नही की थी|

अंग्रेजो की इस विजय ने इस क्षेत्र की जनता का मनोबल तोड़ दिया और उसके नेता भी शिथिल पड़कर अपने बचाव का मार्ग ढूढने लगे थे| राव राम बख्श सिंह भी अपने एक विश्वास पात्र नौकर चंदी के साथ काशी चले गये और साधुवेश धारण कर लिया| कुछ समय पश्चात् इसी नौकर के विश्वातघात के कारण वे अंग्रेजों द्वारा बंदी बना लिये गये| राव का साथ देने में अंग्रेजों से हुए युद्ध में शिवरतन सिंह, जगमोहन सिंह, चन्द्रिका बख्श सिंह, लाख यदुनाथ सिंह, बिहारी सिंह, राम सिंह, छेदा, राम प्रसाद मल्लाह आदि सैकड़ो की जाने गयी|

राव साहब को काशी से गिरफ्तार कर रायबरेली लाया गया| मुरारमऊ के ठा० दुर्विजय सिंह व मौरावां के लाल चन्दन लाल खत्री ने उनकी शिनाख्त की| डिल्लेश्वर मन्दिर से किसी तरफ अपनी जान बचाकर चार अंग्रेज निकल गये थे जिन्होंने महरौली गांव के ठाकुरों द्वारा पुरस्कार स्वरुप डौडियाखेडा का राज्य पाया| अंग्रेजो ने राव पर झूठे मुकदमे का नाटक रचकर अभियोग तथा झूठी गवाही दिलाकर उन्हीं की राजधानी डौडिया खेडा के बक्सर में डिल्लेश्वर में मन्दिर जिसमे अंग्रेज अधीकारियों को जलाया गया था| उसी के समीप खड़े बट वृक्ष से लटका कर 28 दिसम्बर 1859 को 4:00 बजे उन्हें फाँसी दी गई|